कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें कोशिकाओं की बढ़त असामान्य होती है तथा यह पूरे शरीर में फ़ैल जाती है। पूरे विश्व में किसी भी रोग से मृत्यु की दर में कैंसर का दूसरा
स्थान है। बच्चों में कैंसर
सामान्यतः एक दुर्लभ बीमारी है। वैश्विक रूप से बच्चों का कैंसर 80 प्रतिशत के
लगभग न्यूनतम एवं मध्यम आय वाले देशों में पाया जाता है। भारत के परिपेक्ष्य में
सभी तरह के कैंसर में से 1.6 प्रतिशत से 4.8 प्रतिशत तक बच्चों का कैंसर 15 वर्ष से
कम आयु के बच्चों में पाया जाता है।
इसका सीधा सीधा यह अर्थ है की हमारे देश में हर वर्ष लगभग चालीस हजार बच्चों में
कैंसर रुपी बीमारी को डायग्नोस (निदान) किया जाता है। सभी तरह के बच्चों के कैंसर
में ईलाज उपरांत सर्वाइवल (जीवन रक्षा) की दर उच्च आय वर्गीय देशों में 80 प्रतिशत
है जबकि भारत में यह आंकड़ा 35 से 40 प्रतिशत तक ही है। आज हमारे देश के कई इलाकों
में इस रोग के ईलाज की अनुपलब्धता, ईलाज का वित्तीय बोझ और जागरूकता का अभाव कैंसर
के खिलाफ हमारी लड़ाई में एक बड़ी चुनौती है।
बच्चों में होने वाले
प्रमुख कैंसर रोगों के बारे में आमजन को संक्षिप्त जानकारी आगे दिए गए बिन्दुओं के
माध्यम से साझा करने का प्रयास है :
1.
रक्त कैंसर (ल्यूकेमिया): यह बच्चों
में पाया जाना वाला सबसे सामान्य कैंसर है।
ल्यूकेमिया में भी ए एल एल (एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया) बच्चों में
सामान्य रूप से सबसे अधिक होने वाला कैंसर है। इसके लक्षणों के रूप में लम्बे समय
तक बुखार आना, शरीर पर नीले धब्बे बनना अथवा बिना कारण के रक्त स्त्राव, अनीमिया
(खून की कमी), बार बार संक्रामक रोग होना, पेट में फुलावट होना आदि हो सकते हैं।
इसके निदान के लिए खून की जाँच तथा मेरुरज्ज़ा की जाँच करवानी आवश्यक है।
2.
लिम्फोमा:
भारत में बच्चों में होने वाले कैंसर रोगों में यह मुख्यतः दूसरे स्थान पर आता है।
इस कैंसर की जद में सामान्यतः किशोरावस्था के बच्चे आते हैं जिनकी उम्र 15 से 19
वर्ष के मध्य हो सकती है। इसके लक्षणों के रूप में दर्द रहित गांठे जो की गर्दन, छाती,
बागन व ग्रोइन (पैर और जांघ के बीच का भाग) में पाई जाती हैं। इसके साथ ही लम्बे
समय तक बुखार, वजन का कम होना, भूख न लगना एवं थकान आदि हो सकते हैं। इसके निदान
के लिए रोगी का सम्पूर्ण स्वास्थ्य परिक्षण, खून की जाँच, सीटी स्केन, छाती का
एक्सरे तथा लिम्फ नोड की बायप्सी करवाना महत्वपूर्ण है।
3.
ब्रेन
ट्यूमर: बच्चों के कैंसर में सामान्यतः तीसरा सबसे प्रमुख कैंसर ब्रेन ट्यूमर है।
यह कई प्रकार का होता है तथा इसके लक्षण दिमाग में ट्यूमर की स्थिति एवं
आकार-प्रकार के हिसाब से दिखाई पड़ते हैं। इसके प्रमुख लक्षणों में लगातार उल्टियाँ
आना (2 हफ्ते से अधिक), लगातार सर में दर्द (4 हफ्ते से ज्यादा व मुख्यतः सो कर
उठने के समय), आँखों में भेंगापन अथवा दो दिखाई देना आदि हो सकते हैं। वैसे यह
लक्षण केवल ब्रेन ट्यूमर में ही नहीं दिखाई देते वरन ये किसी अन्य बीमारी से
सम्बंधित भी हो सकते हैं। इसके निदान के लिए एम आर आई, सीटी स्केन तथा बायप्सी
करवाना आवश्यक है।
4.
न्यूरोब्लास्टोमा:
यह स्वायत्त तंत्रिका तंत्र का ट्यूमर है। यह विशेषतः शिशुओं एवं छोटे बच्चों में
पाया जाता है। अधिकांशतः यह पेट में गाँठ बनकर उभरता है परन्तु यह शरीर में और कई
जगहों (जहाँ भी स्वायत्त तंत्रिका तंत्र मौजूद हो) पर भी हो सकता है। जैसे गले
में, मिडियास्टीनम आदि। इस रोग के लक्षणों में पेट में गाँठ, चिडचिडापन, बुखार,
वजन में कमी, खानपान में अरुचि, अनीमिया, चमड़ी पर धब्बे, हड्डी में दर्द अथवा सूजन
आदि हो सकते हैं। इस रोग के निदान हेतु रक्त की जाँच, सीटी स्केन, एम आर आई, बॉन
स्केन, एम आई बी जी सेकन इत्यादि करवाने आवश्यक हैं।
5.
रेटिनोब्लास्टोमा:
यह भी बच्चों में होने वाला एक दुर्लभ कैंसर है। जो नेत्र की रेटिना नामक लेयर
(परत) में बनता है। यह एक अथवा दोनों आँखों में हो सकता है। 40 प्रतिशत मामलों में
यह क्रोमोसोम 13 पर वंशानुगत उत्परिवर्तन से होता है। इसके प्रमुख लक्षणों में आँखों की
पुतली का असाधारण रंग होना जैसे सफ़ेद, नज़र का कमज़ोर होना, भेंगापन, आँखों का लाल
होना इत्यादि है। इसके निदान हेतु निश्चेतनता में आँखों की जाँच, आँखों का यूएसजी
अथवा एम आर आई करवाना आवश्यक हो जाता है।
6.
विल्म्स
ट्यूमर/नेफ्रोब्लास्टोमा: यह बच्चों में गुर्दे का सबसे सामान्य कैंसर है। इसके
लक्षणों में सामान्यतः पेट में गाँठ व मूत्र के साथ रक्त आना आदि हो सकते हैं।
इसके निदान के लिए पेट का यूएसजी, सिटी स्केन अथवा एम आर आई करवाना उचित रहता है।
7.
हिपेटोब्लास्टोमा: यह बच्चों में पाया जाने वाला लीवर का
सबसे सामान्य मेलिगनेंट ट्यूमर है।
यह कैंसर 3 साल से कम उम्र के बच्चों में पाया जाता है। इसके लक्षणों के रूप में
पेट में गाँठ का उभरना और साथ ही बच्चे को बुखार, पेट दर्द, उल्टियाँ व भोजन में
अरुचि भी हो जाती है। इसके निदान हेतु खून की जाँच व एम आर आई करवाना महत्वपूर्ण
है।
8.
ओस्टियोसार्कोमा: प्राथमिक रूप से यह सामान्यतः बच्चों
में पाया जाने वाला अस्थि ट्यूमर है।
इसके लक्षणों के रूप में हड्डियों में दर्द व सूजन, लंगड़ापन, हड्डी या जोड़ का दर्द
जिसका ईलाज उचित चिकित्सकीय प्रबंधन के अनुरूप न हो आदि हो सकते हैं। इसके निदान
के रूप में हड्डियों का एक्सरे या एम आर आई महत्वपूर्ण है।
9.
सॉफ्ट
टिस्यू सार्कोमा: बच्चों में पाया जाने वाला सबसे सामान्य सॉफ्ट टिस्यू सार्कोमा रेहब्डोमायोसार्कोमा
है। यह ट्यूमर शरीर में कहीं भी पाया जा सकता है परन्तु अधिकांशतः यह सिर, गले,
जननांगो, हाथों-पैरों अथवा रेट्रोपेरीटोनियम पर पाया जाता है। इसके सबसे सामान्य
लक्षणों के रूप में जो प्रतीत होता है वह है सामान्य संरचना में विस्थापन और अवरोध
का उत्पन्न होना। इसके निदान के लिए एम आर आई करवाई जाती है।
बच्चों
के कैंसर के इन सभी प्रारूपों के उचित ईलाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है की इसका
ईलाज ऐसे संस्थान में हो जहाँ मुख्य रूप से बच्चों के कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हों।
साथ ही इसकी शुरुआत उचित निदान के साथ हो जो की कैंसर के सही चरण को इंगित करती हो
एवं निदान के साथ ही रोग के प्रोग्नोसिस (पूर्वानुमान) को भी उचित तरीके से
निर्धारित किया जाना चाहिए। इसके ईलाज के रूप में कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, शल्य
चिकित्सा और बायोलोजिक्स सम्मिलित रूप से आते हैं। कैंसर के उचित ईलाज के लिए एक
पूर्णरूपेण प्रशिक्षित एवं दक्ष टीम की आवश्यकता सदैव रहती है जिसमें बच्चों के
कैंसर विशेषज्ञ, पैथोलोजिस्ट, रेडियोलोजिस्ट, शल्य चिकित्सक, रेडियोथेरेपिस्ट, दक्ष
नर्सें, न्यूट्रीशनिस्ट, सोशल वर्कर्स, मनोविज्ञानी, फार्मासिस्ट एवं अन्य मेडिकल
विशेषज्ञ आदि होते हैं। देश में कई ऐसे प्रमुख संस्थान हैं जो बच्चों के कैंसर के ईलाज के लिए अग्रणी हैं जैसे एम्स नई दिल्ली, पी जी आई चंडीगढ़, टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई, किदवई मेमोरियल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओन्कोलोजी बैंगलोर, अहमदाबाद सिविल अस्पताल, रीजनल कैंसर सेंटर तिरुवनंतपुरम आदि।
डॉ. निशात अहमद
शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ
फोर्टिस डीटीएम अस्पताल बीकानेर